
Musafir Cafe (Hindi)

कि एक दिन नॉर्मल दिखने का नाटक करते-करते सही में ठीक वैसे ही नॉर्मल हो जाएगा
Divya Prakash Dubey • Musafir Cafe (Hindi)
जो सुबह जल्दी नहीं उठते वो किसी दिन गलती से जल्दी उठ जाते हैं तो उन्हें लगने लगता है सुबह इतनी अच्छी होती है, रोज ही सुबह उठना चाहिए।
Divya Prakash Dubey • Musafir Cafe (Hindi)
“झूठ क्यूँ बोलते हो तुम?” “क्यूँकि झूठ में उम्मीद होती है।” “झूठ आखिर में उम्मीद तोड़ता भी तो है।” “झूठ से ‘आखिर’ तक बात चलती तो है। वर्ना सारे रिश्ते एक शाम में खत्म हो जाएँ।”
Divya Prakash Dubey • Musafir Cafe (Hindi)
प्यार जैसा शब्द खोजने के बाद दुनिया ने नए शब्द ढूँढ़ना बंद कर दिया जबकि दो लोग आपस में रोज कुछ ऐसा नया ढूँढ़ लेते हैं जिसको प्यार बोलकर छोटा नहीं किया जा सकता।
Divya Prakash Dubey • Musafir Cafe (Hindi)
जिनके पास खोने के लिए कुछ नहीं होता वो फैसले जल्दी ले लिया करते हैं।