
Musafir Cafe (Hindi)

हमारे सब जवाब हमारे पास खुद हैं, ये बात समझने के लिए अपने हिस्से भर की दुनिया भटकनी पड़ती ही है। बिना भटके मिली हुई मंजिलें और जवाब दोनों ही नकली होते हैं। वैसे भी जिंदगी की मंजिल भटकना है कहीं पहुँचना नहीं।
Divya Prakash Dubey • Musafir Cafe (Hindi)
रास्ते केवल वो भटकते हैं जिनको रास्ता पता हो, जिनको रास्ता पता ही नहीं होता उनके भटकने को भटकना नहीं बोला जाता है।
Divya Prakash Dubey • Musafir Cafe (Hindi)
जिनको गहरी नींद नहीं आती वो समझ पाते हैं कि दुनिया में सुबह से अच्छा कुछ होता ही नहीं। किसी भी चीज को हम सही से समझ ही तब सकते हैं जब हम उसको पाकर खो दें। पाकर पाए रहने वाले अक्सर चूक जाया करते हैं।
Divya Prakash Dubey • Musafir Cafe (Hindi)
एक वक्त के बाद हम बड़े-से-बड़ा दुःख तो बर्दाश्त कर लेते हैं, पर छोटी-से-छोटी खुशी झेली नहीं जाती।
Divya Prakash Dubey • Musafir Cafe (Hindi)
लाइफ की सबसे बुरी बात यही होती है, जब वो ऑन पेपर perfect दिखती है तब होती नहीं है और जब ऑन पेपर perfect नहीं दिखती तब perfect होती है।
Divya Prakash Dubey • Musafir Cafe (Hindi)
“झूठ क्यूँ बोलते हो तुम?” “क्यूँकि झूठ में उम्मीद होती है।” “झूठ आखिर में उम्मीद तोड़ता भी तो है।” “झूठ से ‘आखिर’ तक बात चलती तो है। वर्ना सारे रिश्ते एक शाम में खत्म हो जाएँ।”
Divya Prakash Dubey • Musafir Cafe (Hindi)
पैसा कमाने में कई बार जिंदगी धीरे-धीरे करके गँवानी पड़ती है। धीरे-धीरे होने वाली कोई भी चीज पता ही नहीं चलती। इसलिए जब पैसे इकट्ठा हो जाते हैं तब तक वो अपना मतलब खो चुके होते हैं।
Divya Prakash Dubey • Musafir Cafe (Hindi)
कि एक दिन नॉर्मल दिखने का नाटक करते-करते सही में ठीक वैसे ही नॉर्मल हो जाएगा
Divya Prakash Dubey • Musafir Cafe (Hindi)
किसी के जाने के बाद हम इस उम्मीद में नॉर्मल बिहैव करने लगते हैं
Divya Prakash Dubey • Musafir Cafe (Hindi)
जो भी रातें रोते हुए गुजरती हैं वो अगले दिन सुबह जरूर कुछ अलग लेकर आती हैं।